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चित्त की अवस्था अंतर प्राप्ति कर्म है

कर्म के अनुरूप मनुष्य को अपना कर्म भोगना पड़ता है : पुरोधा प्रमुख

जमालपुर। विश्वस्तरीय धर्म महासम्मेलन के दूसरे दिन शनिवार को श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने अपने संबोधन में विषय “जैसी करनी वैसी भरनी” पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि तंत्रशास्त्र में लिखा है – चाहे कर्म करोड़ों-करोड़ों, कोटि-कोटि, कल्प-कोटि पुराने क्यों ना हो, जब तक क्षय ना हो तब तक कर्म के अनुरूप फल भोगना पड़ता है। फल चाहे शुभ हो या अशुभ हो, एक निश्चित समय तक कर्म का प्रभाव झेलना पड़ता है। चित्त की अवस्था अंतर प्राप्ति को ही कर्म कहते हैं। जिस प्रक्रिया सचित्र विकृत अवस्था से मूल अवस्था में लौटता है, उसे कर्म भोग या विपाक कहते हैं। जब तक मनुष्य के संस्कार का से नहीं होता तब तक मनुष्य को बार-बार जन्म लेना पड़ता है।

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