ज़ुल्म का नामोनिशां जिस दिन मिट जायेगा …
ये बेरोज़गार, रोज़गार हो जायेगा
वो बूढ़ी बेबस सड़क पर सोती लाचार माँ
दर दर भटकने छोड़ आया था उस माँ का लाड़ला
तड़पता देख उसे , मैं छोड़ आया था उस लाड़ले के महल में
चन्द ज़ालिम जो कर रहे थे उस माँ पर पत्थरों की बौछार हँस रहे थे जो माँ की लाचारी पर खुद को समझ कर होशियार
कहने लगे हँस हँस कर मुझे , की वो देखो है बेरोज़गार
हाँ मैं हूँ उन निगाहों में बेरोज़गार , क्यूँ की हूँ मैं इक मददगार
देखा जब मेरी निगाहों ने , यतीम भूखे रोते बिलखते नन्हे हाथो को
लगाते हुए मदद की गुहार , कर रहे थे वो भूख से रोटी की पुकार
पनाह दे आया मैं उन यतीमों को , उजड़ी गोद की किलकारियां बना कर
उनका भी घर आबाद हो आया था
मिला जो माँ का आँचल उनको , ये देख मेरा दिल भर आया था , की ये देख मेरा दिल भर आया था , नसीब में यतीमों के खुशियों का जो लम्हा आया था
हस रहे थे मुझ पर लोग , ठहाके मार मार कर
दे रहे थे ताना बेरोजग़ारी का , निगाहें फाड़ फाड़ कर
हाँ मैं हूँ उन निगाहों में बेरोज़गार , क्यूँ की हूँ मैं इक मददगार
खेत खलिहानों से गुजरते , मेहनतक़श किसानो को देखा जब पानी तक को तड़पते
बेघरों को देखा जब बारिश की साज़िश में भटकते , और चिलचिलाती धुप में नन्हे बच्चों संग झुलसते
लगा आया था आशियाना उनके रह गुज़र बसर करने को , कर आया था इन्तेज़ामात प्याऊ की तृप्त प्यास को उनके करनेी
लगाने लगे फिर से लोग इलज़ाम , नहीं है इसके पास और कोई काम
हाँ मैं हूँ उन निगाहों में बेरोज़गार , क्यूँ की हूँ मैं इक मददगार
शहनाई की धुन में मंडप तले , जब दुल्हन को ठुकराते उस दूल्हे को देखा
दबे दहेज़ के बोझ तले, घबराये ,सहमाये और आँखों में अश्क़ छुपाये , जब उस लाचार बेबस इक बाप और इक भाई को देखा
वो खुशियों के शमा तले, जब ग़मगीन दर्द और अश्कों का सिलसिला देखा
फेरों से पहले जब उस शर्मीली मासूम सी दुल्हन का घर उजड़ते देखा
चन्द दौलत के लालचियों को जब दुल्हन की माँ आँचल रौंदते देखा
खदेड़ा तब, उस दौलत के भूखे दूल्हे को,उस निर्लज दूल्हे के बाप को |
जब बेबस दुल्हन को उसके परिवार सहित अपमानित और कलंकित देखा
कार्यवाही कचहरियों की जाकर , तब मैंने उस बेबस बेटियों की करवाई
माँ बाप जिनके थे लाचार , साथ उनका देकर मैंने , ज़ालिमों को जर्म की सजा दिलवाई
कह कर जब फिर निंदकों ने मुझपर, लगायी इल्ज़ामों की बौछार, की देखो फिर आ गया ये समाज सुधार , की देखो फिर आ गया ये बेरोज़गार
हाँ मैं हूँ उन निगाहों में बेरोज़गार , क्यूँ की हूँ मैं इक मददगार
इल्तिज़ा है हर किसी से मेरी बार बार ,
इंसानियत मत खो बैठ , जब कर रहा हो कोई मदद की गुहार
……स्वरचित……….✍# Ashish Sah Royjada. सदर बाजार बड़ी काली रोड,जमालपुर, मुँगेर
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