जमालपुर। आनंद मार्ग प्रचारक संघ के तत्वधान में आयोजित त्रिदिवसीय विश्वस्तरीय धर्म महासम्मेलन का रविवार को समापन हो गया। धर्म महासम्मेलन के अंतिम दिन रविवार को आनंद मार्ग प्रचारक संघ संस्था के पुरोधा प्रमुख सह अध्यक्ष आचार्य विश्व देवानंद अवधूत ने “क: पंथा:?” शीर्षक विषय पर अपना आध्यात्मिक वक्तव्य रखते हुए कहा कि वास्तविक मार्ग क्या है? कौन सा पथ अपनाया जाए? भगवान कृष्ण श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि “हे पार्थ! मुझे जो भी प्राणी जो कुछ मुझसे मांगता है, जैसी चाहत रखता है, मैं उसे उसी प्रकार से पूरा करता हूं।” अर्थात जिसकी भावना जैसी रहती है, प्रभु उसकी भावना को उसी रूप में पूरा करते हैं। मान लो किसी व्यक्ति में बहुत अधिक खाने की इच्छा हो तो हो सकता है कि उसे अगले जन्म में सूअर योनि में जन्म लेना पड़े। हिरण कश्यप के बारे में कहा गया है कि उसके मृत्यु की इच्छा प्रभु ने पूरी की थी। एक कहानी के माध्यम से पुरोधा प्रमुख ने बताया कि शिवानंद जी के आश्रम में एक बच्चा रहता था। उस बच्चे ने इच्छा किया कि वह कुछ दिन घर पर रहकर स्वत: आश्रम वापस आ जाएगा। कई महीने बीत गए लेकिन वह बच्चा वापस नहीं आया गुरुजी कुछ महीने बाद जब उसके घर गए और उसे याद दिलाया तो उसने कहा कि कुछ दिन मुझे और घर में रहने दिया जाए फिर स्वतः वापस आ जाऊंगा। कई महीने बीत जाने के बाद वह बच्चा वापस आश्रम नहीं आने पर गुरुजी उसके घर गए तो उसने कहा कि मैं दुनिया के भोग का रसपादन कर लूं फिर वापस आऊंगा। उसने शादी कर ली और बच्चे भी हो गए, मगर वह आश्रम नहीं लौटा। कुछ वर्षों बाद उसकी मृत्यु हो गई और वह अगले जन्म में नाग योनि में पैदा लिया और उसी घर में रहने लगा। वह नाग उस घर के सदस्यों को तो तंग नहीं करता था। मगर बाहरी लोगों को परेशान किया करता था। पुरोधा प्रमुख ने कहा कि परमात्मा सब की इच्छा पूर्ति करते हैं। मगर मनुष्य अपने सुख समृद्धि के लिए दूसरों के क्षति व अहित की इच्छा करते हैं। मनुष्य को अपने कर्मों का प्रतिफल स्वयं भोगना पड़ता है। इसलिए हमें सदमार्ग पर चलना चाहिए। ईश्वर भक्ति ही मनुष्य की वास्तविक पथ है।
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