एसबीएन आध्यात्मिक डेस्क। ज्ञानी व्यक्ति जो जानते हैं कि क्या उचित है, क्या अनुचित हैं, फिर भी अपने जन्मजात संस्कारों के द्वारा और जानबूझकर अनुचित वस्तुओं के पीछे भागते हैं ।’’ जब एक ज्ञानी व्यक्ति का मन स्थूल भौतिकता के पीछे भागता है, तब कौन मन को बलपूर्वक खींचकर सूक्ष्मता की ओर ले जा सकता है । स्थूल बंधन के जंजीर को तोड़कर शुभ की ओर कौन ले जा सकता है? केवल चैतन्य मंत्र ही ऐसा कर सकता है । केवल सिध्द मंत्र ही यथार्थ मंत्र है, इसके अतिरिक्त कोई मंत्र नहीं है । बाकी मात्र शब्दों का समूह है । मंत्र का अर्थ है – वह सिध्द षब्द जो मोक्ष प्राप्त करने में सहायता करता है, वह ‘मंत्र’ है । मानसिक जगत में मनुष्य जो आगे बढ़ते है उसे हम प्रगति नहीं कह सकते । उसे सिर्फ स्थान परिवर्तन कह सकते हैं, । जैसे, इस तकिए को लो । यह यहाँ है । जब यहाँ स्थान का परिवर्तन हो गया । निश्चय ही यह स्थान का परिवर्तन है, किन्तु प्रगति नहीं । इंसान जब आगे बढ़ते हैं, तब चलते हैं, उसे प्रगति कहते है । और इस प्रगति के लिए यंत्र की आवश्यकता है । मंत्र नहीं होने से काम नहीं होगा । अस्तित्व का अर्थ नहीं रहेगा । इसलिए बुध्दिमान मनुष्य, जितनी कम उम्र में हो सके, अपना मंत्र ले लें, अपने संस्कार के अनुसार मंत्र निर्धारित कर लें । और उसी के अनुसार आगे बढ़ते रहें, आध्यात्मिक जगत में चलते रहें । आध्यात्मिक जगत में चलते वक्त जो मानसिक तथा स्थूल जगत के प्रति अपना कर्तव्य सही तरीके से करेते रहेंगे । यही है मनुष्य का जीवन । आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति के लिए निश्चय ही मानसिक क्षेत्र या भौतिक वाह्य जगत की उपेक्षा करने से काम नही चलेगा । वह दृढ़ता के साथ आध्यात्मिक क्षेत्र में चलेगा और आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति के साथ ही उनमें साहस और सत्यनिष्ठा का उदय होगा, जिसका उपयोग समस्त संसार के मानसिक कल्याण के लिए हो सकेगा । आध्यात्मिक साधक समस्त संसार के कल्याणमूलक कार्याें में में अपना योगदान करेंगे, क्योंकि आध्यात्मिक साधकों की तरह उतनी सेवा कोई नहीं कर सकता । इसलिए जो व्यक्ति आध्यात्म के पथ पर अग्रसर है, उसे यह याद रखना चाहिए कि वह आध्यात्मिक मुक्ति के लिए साधना कर रहा है और वह तब तक सफल नहीं होगा जब तक वह संसार की सेवा के लिए स्वयं को प्रस्तुत नहीं करेगा । यथार्थ प्रगति केवल आध्यात्मिक स्तर में ही हो सकती है । भौतिक स्तर अथवा भौतिक-मानसिक स्तर अथवा मानसिक स्तर में कोई प्रगति नहीं हो सकती । इसके अतिरिक्त प्रगति के नाम से जो भी जाना जाता है वह केवल स्थान का परिवर्त्तन है, इसके अतिरिक्त कुछ नहीं । अपने कर्म और अपनी साधना द्वारा तुम अपने मनुष्य जीवन के मूल्य को बढा लोगे । तुम्हें क्यों एक सामान्य मनुष्य की तरह जीवन जीना चाहिए? असाधारण बन जाओ । असाधारण मनुष्य अंत में स्वयं को देवत्व की ऊँचाई पर प्रतिष्ठित कर लेते हैं । अर्थात् मनुष्य देवता बन जाते हैं और देवता परमपुरुष बन जाते हैं । अपने असाधारण कर्माे के द्वारा अपने अस्तित्व को महान बना लो । तुम्हारा जीवन ज्यादा से ज्यादा अर्थपूर्ण हो जायगा यदि तुम ज्यादा से ज्यादा काम और ज्यादा से ज्यादा ध्यान करोगे । आध्यात्मिक साधना क्यों? अपने जीवन की कीमत इससे बढ़ जाएगी । मानव जीवन की कीमत पशु जीवन से अधिक है, इसलिए वजह यही है कि मनुष्य अपने जीवन को अधिक मूल्यवान कर सकते हैं । मनुष्य का जो ईष्ट मंत्र है मनुष्य के लिए सबसे प्यारी चीज है । इसलिए इसे छिपाकर रखना है । अधिक प्यार की चीज को अधिक प्यार के लिए रखना चाहिए । इसलिए कहा जाता है कि ईष्ट मंत्र का वाहयिक उच्चारण नहीं होना चाहिए । उच्चारण करेगा मन, उच्चारण करते हुए मन आत्मा की ओर चलता रहेगा और कान भीतर से सुनता रहेगा, बाहर से नहीं । अंत में, मंत्र की सहायता से कोई मंत्र चैतन्य प्राप्त कर लेगा । मंत्र चैतन्य का अर्थ हैः मंत्र का उच्चारण अर्थ और ईश्वरीय भाव के साथ हो। और जब वह मंत्र चैतन्य प्राप्त कर लेगा, उसका मार्ग दर्शन करने के लिए, आपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ने के लिए, लक्ष्य की ओर चलने के लिए उसे प्रकाश स्तम्भ मिल जायगा । प्रस्तुतिः दिव्यचेतनानन्द अवधूत