– एसएनसीयू में बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध
– फैसिलिटी एवं समुदाय स्तर पर नवजात के लिए कई सुविधाएँ
पूर्णियाँ/ 19 नवम्बर:
सही समय पर उचित स्वास्थ्य सुविधा के आभाव में नवजात को गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है. नवजात में होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की समय पर पहचान कर उन्हें सुरक्षित किया जा सकता है. इसे ध्यान में रखते हुए फैसिलिटी एवं समुदाय स्तर पर स्वास्थ्य विभाग द्वारा कई स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराये गए हैं. जिसमें सिक न्यू बोर्न यूनिट की भूमिका अहम है.
एसएनसीयू की अहम भूमिका: राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी बाल स्वास्थ्य डॉ. वीपी राय ने बताया नवजातों में होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की पहचान कर उन्हें बचाया जा सकता है. इस दिशा में गृह आधारित नवजात देखभाल कार्यक्रम के तहत आशा घर-घर जाकर परिवारके लोगों को नवजात में होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की जानकारी दे रही है. साथ ही जन्म के समय 1800 ग्राम या उससे कम वजन के नवजात एवं 34 सप्ताह से पूर्व जन्म लिए नवजातों को बेहतर देखभाल प्रदान करने के उद्देश्य से सभी जिला अस्पतालों में सिक न्यू बोर्न यूनिट(एसएनसीयू) की स्थापना की गयी है. इससे नवजातों को नया जीवनदान मिल रहा है.
ऐसे बच्चों की होती है एसएनसीयू में भर्ती:
जन्म के समय 1800 ग्राम या उससे कम वजन के नवजात शिशु
34 सप्ताह से पूर्व जन्म लिए नवजात शिशु
जन्म के समय या बाद में सांस नहीं ले पा रहे नवजात शिशु
स्तनपान करने में अक्षम बच्चे
गंभीर पीलिया से ग्रसित बच्चे
नवजात शिशु का शरीर नीला पड़ने, किसी भी अंग से रक्त स्त्राव होने एवं गंभीर दस्त से ग्रसित नवजात शिशु
जन्मजात विकृति से ग्रसित नवजात शिशु( होंठ कटा होना, तालू चिपका होना एवं हाथ या पैर टेढ़े होने पर)
डिस्चार्ज बच्चों का फोलोअप: एसएनसीयू से डिस्चार्ज होने के बाद भी कम वजन वाले बच्चों में मृत्यु का अधिक ख़तरा रहता है. स्वस्थ नवजात की तुलना में जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों में कुपोषण के साथ मानसिक एवं शारीरिक विकास की दर प्रारंभ से उचित देखभाल के आभाव में कम हो सकती है. इसे ध्यान में रखते हुए नवजात के डिस्चार्ज होने के बाद भी उनका नियमित फोलोअप किया जाता है. इसके लिए आशाएं शिशुओं को 3 माह से 1 वर्ष तक त्रैमासिक गृह भ्रमण कर उनकी देखभाल करती हैं.
खुद जाने नवजात की समस्या: नवजात में होने वाली स्वास्थ्य जटिलताओं की सही समय पर जानकारी होना जरुरी है. इससे उनकी जान बचायी जा सकती है. नवजात की जटिलताओं को जानकर तुरंत आशा या एएनएम से संपर्क करना चाहिए या फिर नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में नवजात को ले जाना चाहिए
नवजात स्तनपान नहीं कर पा रहा हो
नवजात का शरीर अधिक ठंडा या गर्म हो गया हो
नवजात के शरीर में कोई हलचल नहीं हो रही हो
नवजात को अचानक दौरे पड़ रहे हों
जिला कार्यक्रम प्रबंधक ब्रजेश कुमार सिंह ने बताया कि जन्म होने के बाद बीमार बच्चों के इलाज के लिए नवजात शिशु देखभाल इकाई में इलाज की बेहतर व्यवस्था है. डॉक्टरों की टीम के साथ स्टाफ नर्स की निगरानी में बच्चों का इलाज होता है. चूंकि एक माह तक शिशु को सबसे ज्यादा गंभीर बीमारी का खतरा रहता है. उनकी देखभाल में थोड़ी सी भी लापरवाही नुकसानदेह हो सकती है. इसलिए बच्चों की देखभाल के लिए इस वार्ड को बनाया गया है. निम्न वर्गीय परिवार के शिशुओं के लिए यह काफी कारगर साबित हुआ है.
इसलिए जरुरी है नवजात गहन देखभाल : गत वर्षों में राज्य के शिशु एवं 5 साल से अंदर के बच्चों के मृत्यु दर में कमी आयी है. लेकिन नवजात मृत्यु दर में वांछित कमी देखने को नहीं मिली है. एसआरएस के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2010 में शिशु मृत्यु दर 48 प्रति 1000 जीवित जन्म थी जो वर्ष 2017 में घटकर 35 हो गयी. वहीँ वर्ष 2010 में 5 साल से अंदर के बच्चों का मृत्यु दर 64 था जो वर्ष 2017 में घटकर 41 हो गयी . लेकिन वर्ष वर्ष 2010 में नवजात मृत्यु दर मृत्यु दर 31 थी जो वर्ष 2017 में घटकर केवल 28 ही हो सकी. इस लिहाज से नवजात प्रबंधन पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है.