जमालपुर। श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने “यथा ब्रह्मांड तथा पिंडे” शीर्षक विषय वस्तु पर व्याख्यान देते हुए कहा कि जो ब्रह्मांड में अवस्थित है वही मनुष्य शरीर में भी है। आनंद मार्गदर्शन में कहा गया है कि “सप्तलोकाक्तत्मक ब्रह्मणों”। अर्थात जो ब्रह्म है वह सात लोकों से निर्मित है। ब्रह्मांड के सात लोकों में पहला स्तर है सत्यलोक। सत्यलोक में सत्य स्वरूप को छोड़कर वहां कुछ भी नहीं है। वहां द्वैत भाव व बोध नहीं है। ब्रह्म यहां निर्गुण, निर्विकार व अविकृत है। माया के प्रभाव से ऊपर है। वेद के श्लोक का उदाहरण देते हुए कहा कि अनुभूति प्राप्त ऋषियों ने उन्हें चने की अंकुर अवस्था से तुलना करके बोद्धगम्य किया है। माया कल अथवा अंकुर है किंतु परम पुरुष ब्रह्म निष्कल है, सत्यलोक की अवस्था में। जिस प्रकार चने के छिलके को हटाने के बाद दो दल निकलते हैं, ठीक उसी प्रकार पुरुष और प्रकृति के मेल से ब्रह्म सृष्टि की कल्पना करते चलते हैं। यह सृष्टि विविधात्मक है। सत्य लोक के अतिरिक्त अन्य छह लोक परमात्मा के भूमा-मन अथवा माया के प्रभाव में आ जाते हैं। सर्वप्रथम प्रकृति ब्रह्म को जागृत कर देती है और पुरुष को प्रभावित कर ब्रह्म में “मैं पन” बोध जागृत होता है। जनर लोक में सद्गुण प्रबल लेकिन तमोगुण रजोगुण पर प्रभावी होता है। महरलोक में रजोगुण का प्रबल होता है। स्वर लोक मैं रजोगुण प्रधान होता है जबकि तमोगुण सद्गुण पर प्रभावी होता है। इस लोक में अच्छे कर्म का फल प्राप्त होता है इसे स्वर्ग लोक के नाम से भी जाना जाता है स्वर्ग लोक की लालसा में लोभी मनुष्य शुभ कर्म करते हैं। यह सूक्ष्म मानसिक स्तर है। भुवः लोक या भुवर्लोक में तमोगुण का प्रबल अधिक होता है। यह परमात्मा का स्थूल मानसिक स्तर है। भुवर्लोक में पंचमहाभूत क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा का निर्माण होना शुरू हो जाता है। यह शुभारंभ की अवस्था होती है। सबसे आखरी अस्तर भूलोक में पंचमहाभूत अस्तित्व में आ जाते हैं। यही हमारा पांचभौतिक जगत कहलाता है। यह भौतिक जगत की रचना पूर्ण हो जाती है। इसलिए यह भूलोक संपूर्ण रूप से तमोगुण प्रधान है इस प्रकार ब्रह्मांड अस्तित्व में आता है। पुरोधा प्रमुख ने कहा कि ब्रह्म को जीव की तरह कोई स्थूल नहीं होता है। बाबा आनंदमूर्ति को तारक ब्रह्म के रूप में व्यक्त करते हुए उन्होंने उनके स्थिति काल में घटित कुछ घटनाओं का वर्णन कर साधकों को इस ब्रह्म संबंधित दुर्लभ विषय को सहज रूप से समझाया। उन्होंने कहा कि इस शरीर की अवस्था में ब्रह्म अर्थात बाबा आनंदमूर्ति छप्पन भोग का आनंद अवश्य लेते हैं। पुरोधा प्रमुख के आध्यात्मिक दर्शन के उपरांत प्रभात संगीत गायन अंग्रेजी, हिंदी एवं बांग्ला भाषा में किया गया।
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