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पटना : विश्व स्तनपान सप्ताह: स्वस्थ परिवार, स्वस्थ संसार के लिए हर बच्चे को मिले स्तनपान का अधिकार

•स्तनपान केवल माँ नहीं बल्कि परिवार, समाज और सरकार की सामूहिक ज़िम्मेदारी

• स्तनपान के बढ़ावा देने से विश्व के 820,000 से अधिक बच्चों की जान बचाई जा सकती है

पटना/ 7 अगस्त

यह ख़ुशी की बात है की बिहार के शिशु मृत्यु दर में लगातार सुधार हो रहा है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (2018) के हालिया सर्वेक्षण में बिहार में शिशु मृत्यु दर 32 (प्रति हजार जीवित जन्मे बच्चों में) है। लेकिन राज्य में पोषण से संबंधित संकेतकों में सुधार करने की दिशा में अभी एक लंबा रास्ता तय करना है, विशेष रूप से 5 साल से कम उम्र के बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिए. कॉम्प्रेहेंसिवनेशनल न्यूट्रीसनल सर्वे (सी एन एन एस 2016-18 ) के अनुसार भारत में 57% शिशुओं को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान मिलता है और बिहार में यह आंकड़ा 46 % है। भारत में 58 % बच्चों को छह माह तक सिर्फ माँ का दूध दिया जाता है और बिहार में यह आंकड़ा 62.7 % है।
असदुर रहमान, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ, बिहार ने बताया कि ये आंकड़े दिखाते है स्तनपान की निरंतरता बनाए रखने में अभी बहुत चुनौतियाँ हैं और परिवारों और माताओं में जागरूकता कमी है। हर कोई यह कहता तो है की माँ का दूध अम्रत के सामान है पर ज़रा सी कठिनाई होती है — जैसे माँ को हलकी सी बीमारी, या कहीं बाहर जाना हो, बच्चा रो रहा हो या बच्चा बीमार हो, तो हम तुरंत माँ का दूध देना बंद कर देते हैं।
कई बार तो माँ और परिवार के मन में स्तनपान से संबंधित पूर्वाग्रह और भ्रांतियों जैसे माँ के दूध से शिशु का पेट नहीं भरता, गर्मी के दिनों में बच्चे को प्यास लगती है आदि, के कारण स्तनपान नियमित रूप से नहीं कराया जाता है। जबकि स्तनपान के विज्ञान से यह स्पष्ट है की यह एक हार्मोन पर निर्भर होने वाली प्रक्रिया है जिसके लिए माँ को मानसिक रूप से प्रसन्न रहकर, कुशलता से शिशु को स्तनपान कराने से ही अधिक दूध बनने की क्रिया प्रारंभ होती है।
इसके अलावा बाहरी शिशु-खाद्य पदार्थों (डिब्बे का दूध) की आक्रामक एवं आकर्षक मार्केटिंग, के कारण परिवार के सदस्यों पर बोतल से दूध देने का दबाव होता है. यद्यपि भारत में शिशु दुग्ध पदार्थ विकल्प अधिनियम लागू है, जो शिशु-दूध फॉर्मूला को स्वास्थ्य सुविधाओं के अंदर और आस-पास में बेचने और बढ़ावा देने को दृढ़ता से प्रतिबंधित करता है, परन्तु इस कानून का कड़ा से पालन आवश्यक है। ब्रैस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ़ इंडिया (बी पी एन आई) के हाल ही के अध्ययन के अनुसार माँ के दूध के विकल्पों की भारत में बिक्री 2016 में कुल 26.9% थी और 2021 में अनुमानित 30.7% होगी ।
बिहार में कुपोषण दूर करने के लिए इन्फेंट एंड यंग चाइल्ड फीडिंग (आई वाई सी एफ) प्रथाओं को सुदृढ़ करने के लिए राज्य स्तरीय रिसोर्स सेंटर है। यूनिसेफ इसमें बिहार सरकार को तकनीकी सहयोग दे रहा है। एक वैश्विक अध्ययन का अनुमान हैं, स्तनपान को बढ़ावा देने से 5 वर्ष से कम उम्र के विश्व के 820,000 से अधिक बच्चों की जान बचाई जा सकती है ।

माँ के दूध का कोई विकल्प नहीं है:
असदुर रहमान, राज्य प्रमुख, यूनिसेफ, बिहार ने कहा कि माता और पिता, समाज और नीति बनाने वालों को यह समझना चाहिए की स्तनपान या माँ के दूध का कोई विकल्प नहीं हैं। माँ का पहला दूध (खिर्सा, कोलोस्ट्रम) को बच्चे का पहला टीका-करण माना जाता है। यह बच्चे को रोग-प्रतिरोधक क्षमता का शास्त्र देता है जो उनके पूरे जीवन चक्र को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। मां के दूध में लेक्टोफोर्मिन, इम्मुनोग्लोबिन जैसे रोगाणु नाशक तत्व होते हैं जो उन्हें पेट के कीड़े, कान के संक्रमण, निमोनिया और मूत्र-पथ के संक्रमण से बचाने में मदद करता है।
स्तनपान से बच्चें की बुधिमत्ता लब्धि बढ़ाने का लाभ भी देता है तथा गैर संचारी रोगों को रोक देता है। स्तनपान धात्री माताओं के लिए भी लाभदायक है क्योंकि यह स्तन कैंसर और डिम्बग्रंथि के कैंसर की आशंका को कम करता है। स्‍तनपान से माँ व शिशु के बीच भावनात्‍मक रिश्ता भी कायम होता है।
ग़ौरतलब है की स्तनपान से परिवार और समुदाय को आर्थिक रूप से भी फायदा है; एक आकलन के अनुसार स्तनपान को बढ़ाने से विश्व को $302 बिलियन की सालाना अतिरिक्त आय उत्पन्न होती के जो विश्व की सकल राष्ट्रीय आय का लगभग 0.5 प्रतिशत हैं ।
मौजूदा पोषण अभियान के अंतर्गत समुदाय-आधारित गतिविधियों जैसे आरोग्य दिवस, अन्नप्राशन दिवस, गोद-भराई, वृद्धि निगरानी के दौरान स्तनपान पर समूह और व्यक्तिगत परामर्श के लिए सबसे अच्छा उपयोग किया जा सकता है।

बेटी हो या बेटा, माँ का दूध हर शिशु का अधिकार है:

जन्म के प्रथम घंटे में यथाशीघ्र; जन्म से प्रथम छह माह तक सिर्फ माँ का दूध.

• प्रथम घंटे में यथाशीघ्र स्तनपान के साथ जीवन का शुभारम्भ करें और शिशु को उसका प्राकृतिक अधिकार दें।

•जन्म से प्रथम छह माह तक सिर्फ माँ का दूध इसके अतिरिक्त कोई अन्य दूध, खाद्य पदार्थ, यहाँ तक कि पानी भी नहीं पिलाना चाहिए।

•छ: माह पूर्ण होते ही शिशु को माँ के दूध के साथ–साथ घर पर बना हुआ अर्द्धठोस आहार देने से शिशु का शारीरिक और बौद्धिक विकास तेजी से होता है।

• माँ कोरोना से संक्रमित या संदिग्ध है तो भी स्तनपान जारी रख सकती है

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2 Comments

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