मुंगेर/पटना।। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तथा शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर एक नई बिहार के निर्माण का जो सपना संजोए हुए है, उसे पूरा करने में सरकारी महकमे के अधिकारियों तथा पदाधिकारियों की ओर से कितना सहयोग मिल रहा है और बिहार के आम जनमानस को कितना लाभ पहुंच रहा है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है।
सरकारी वायदे और दावे केवल मीडिया के सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए होते हैं। धरातल पर इन दावों और वादों का कहीं भी अस्तित्व नजर नहीं आता। सरकार चाहे कितना भी ताकत झोंक ले सरकारी योजनाओं का फायदा समाज के अंतिम पायदान पर गुजर बसर कर रहे आम जनता तक पहुंचते-पहुंचते पूरी योजना ही दम तोड़ देती है।
बिहार के सरकारी विद्यालय में शिक्षा कोरी कल्पना
बात अगर करें बिहार की शिक्षा व्यवस्था की तो बिहार के सरकारी विद्यालयों में अध्ययनरत गरीब, वंचित तथा शोषित वर्ग के बच्चों की कोई सुध लेने वाला नहीं। बिहार के सरकारी विद्यालयों में शिक्षा एक कोरी कल्पना से अधिक कुछ नहीं है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव तथा शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर कितने भी दावे और वादे कर ले लेकिन बिहार के सरकारी विद्यालयों में शिक्षा को सुदृढ़ बनाने की दिशा में ना तो जिले के जिला पदाधिकारी और जिला शिक्षा पदाधिकारी की सक्रियता नजर आती है और ना ही इन सरकारी विद्यालयों में अध्यापन का कार्य कर रहे प्रधानाचार्य और अन्य सहयोगी शिक्षकों की कोई दिलचस्पी नजर आती है। पदाधिकारी से लेकर शिक्षक तक विद्यालय में शिक्षा मुहैया कराने के बजाय मिड डे मील योजना को लूट तंत्र का हिस्सा बनाने में पूरी तरह से व्यस्त रहते हैं। खासकर के दलित एवं महादलित समुदाय के बच्चों के लिए स्थापित विद्यालयों में मिड डे मील योजना के नाम पर किस प्रकार से रद्दी चावल की खुद्दी और फूल गोभी के सूखौते भोजन के रूप में परोसे जा रहे हैं।
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