पूर्णियाँ : कोरोना के मरीजों का किया जा सकता है सम्मानजनक अंतिम संस्कार
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• वेबिनार के जरिए कोरोना संक्रमितों के अंतिम संस्कार के अधिकार पर हुयी चर्चा
• सामाजिक दूरी का पालन करें और अपने बीमार परिजनों के पास मास्क आदि सुरक्षा प्रबंधों के बिना न जाएं
• स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 15 मार्च को जारी किया था मृतकों को दफनाने सम्बंधी दिशानिर्देश
• मृतक के परिजन कर सकते हैं अंतिम बार अपने प्रियजन का दर्शन
• भारत के नागरिकों के नाम खुला खत और अपील
पूर्णियाँ : 01 जुलाई
इस महामारी के दौर में हमारे सामने ऐसी कई घटनाएं आ रही हैं जिनमें लोग अपने प्रियजनों को अंतिम विदाई भी नहीं दे पा रहे हैं. कोरोना संक्रमण और उससे हुई मौत को झेल रहे परिवारों पर यह दोहरा और अनावश्यक आघात है. किसी प्रियजन की मौत के बाद सबसे पहली जिम्मेदारी उन्हें अंतिम विदाई सम्मानजनक तरीके से देने की होती है. शोक की प्रक्रिया इस अंतिम संस्कार वाले क्षण से ही शुरू होती है. इस सम्बंध में वेबिनार के जरिए दिल्ली के विशेषज्ञों द्वारा पत्रकारों से कोरोना संक्रमितों के अंतिम संस्कार के अधिकार पर चर्चा हुई.
पिछले तीन महीने में कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं जिनमें कोरोना संक्रमित लोग अपने अंतिम समय में अपने मां-बाप, बच्चे या जीवनसाथी का साथ नहीं पा सके. कोरोना संक्रमण के भय के कारण परिवार के लोगों को इनसे दूरी बनानी पड़ी. कोरोना के संक्रामक प्रवृत्ति और अस्पतालों की निर्देश के कारण बहुत सारे लोग चाहकर भी अपने प्रियजनों के अंतिम समय में उनके साथ नहीं रह सके.
वैज्ञानिकों के विस्तृत निर्देश के बावजूद कि कोरोना के मरीजों का सम्मानजनक अंतिम संस्कार किया जा सकता है, इस बारे में कई भ्रामक जानकारियां फैली हुई हैं. यह दुखद है कि इन्हीं भ्रामक जानकारियों के कारण परिवार के लोग कोरोना के शिकार लोगों का अंतिम संस्कार नहीं कर पा रहे हैं. कई रिपोर्टों में बताया गया कि कोरोना संक्रमण के भय से परिवार के लोग मृतकों का अंतिम संस्कार नहीं कर रहे हैं जिस कारण सरकारी अधिकारी या अन्य बाहरी लोगों के द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है.
आज जब हम महामारी के दौर से गुजर रहे हैं तब विज्ञान और वैज्ञानिक समझ निश्चित रूप से हमसे अपील करेगी कि हम सामाजिक दूरी का पालन करें और अपने बीमार परिजनों के पास मास्क आदि सुरक्षा प्रबंधों के बिना न जाएं. लेकिन, इसके साथ-साथ हमें इस बीमारी को लेकर लोगों के बीच बनी धारणा को बदलने की भी जरूरत है. हमें एक वृहत अभियान के तहत इस बीमारी को लेकर जागरूकता फैलानी होगी. आज हमें भय, गलतफहमी और भ्रामक जानकारियों के बीच बारीक अंतर पहचानने के लिए विज्ञान की ओर देखना ही होगा.
हर एक व्यक्ति को अधिकार है कि सम्मानजनक तरीके से अपने परिजनों से विदा ले. हमारे लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि मृतकों का अंतिम संस्कार परिजनों द्वारा किए जाने में कोई ख़तरा नहीं है. उन्हें दफ़नाने या उनका दाह संस्कार करने से कोरोना का संक्रमण नहीं फैलता है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मृतकों को दफनाने के संबंध में 15 मार्च को एक विस्तृत दिशानिर्देश जारी किया था. इसमें साफ तौर पर कहा गया था कि मृतक के परिजन अंतिम बार अपने प्रियजन का दर्शन कर सकते हैं. इसमें वैसे सभी धार्मिक कार्यों की भी अनुमति दी गई थी, जिन्हें बिना शारीरिक संपर्क के पूरा किया जा सकता है.
वास्तव में ऐसा कोई वैज्ञानिक या तार्किक कारण नहीं है जो सामाजिक दूरी और सुरक्षा निर्देशों का पालन कर रहे लोगों को अपने प्रियजनों को अंतिम संस्कार करने से रोकता हो. सामाजिक दूरी का पालन करते हुए लोग अपनी मान्यता के अनुसार अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार खुद से कर सकते हैं, इसके लिए कोई रोक नहीं है. बस हमें यहां ध्यान रखना होगा कि अंतिम संस्कार के इस कार्यक्रम में ज्यादा लोग उपस्थित नहीं हों और सामाजिक दूरी का सख्ती से पालन हो. सिर्फ और सिर्फ बहुत करीबी लोग ही इसमें शरीक हों और सभी लोग उचित तरीके से मास्क लगाए हों. वृद्ध लोगों और बच्चों को ऐसे कार्यक्रम से दूर रखा जाए और अगर धार्मिक मान्यता के अनुसार खाने-पीने का इंतजाम करना है तो सबके लिए अलग बर्तन रखे जाएं और ऐसे कार्यक्रम का आयोजन किसी खुली जगह पर कराया जाए.
हम यह खुला पत्र अपने देश के नागरिकों के नाम लिख रहे हैं. हमारा उद्देश्य है कि कोरोना के ख़िलाफ़ जंग में हमारे भाई-बहन वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सहारा लें. इस पत्र के माध्यम से हम उन सभी परिवारों के साथ संवेदना भी जताना चाहते हैं जिन्होंने किसी अपने को खोया है. शोक के इस समय में हम उन परिवारों के साथ कदम से कदम से मिलाकर खड़े हैं और हम उन्हें यह बताना चाहते हैं कि विज्ञान ने कभी नहीं कहा है कि अंतिम संस्कार से पहले अपने मृत प्रियजन को ना देखें. साथ ही अगर वे शारीरिक संपर्क में आने बिना कोई अंतिम धार्मिक कार्य या अंत्येष्टि करना चाहते हैं तो इसके लिए भी कोई रोक-टोक नहीं है.
दिल्ली के विशेषज्ञ टीम में शामिल राजमोहन गांधी, रोमिला थापर, गीता हरिहरन, विक्रम पटेल, शाह आलम खान, सुजाता राव, केशव देसीराजू, वंदना प्रसाद, मैथ्यू वर्गीज़, दिनेश मोहन, रीतुप्रिया, विकास बाजपेयी, इमराना कदीर, सैयदा हमीद, जॉन दयाल, नवशरण सिंह, नताशा बधवार, राधिका अल्काजी, रीता मनचन्दा, तपन बोस, अरमान अल्काजी, अनवर उल हक, हर्ष मंदर ने मीडिया कर्मियों से इस मुद्दे पर राय रखी एवं समुदाय में इसको लेकर अधिक से अधिक जागरूकता फ़ैलाने की बात कही.