पूर्णियाँ : कोरोना माई की पूजा को न दें बढ़ावा, अपनों की सुरक्षा का रखें ख्याल
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– संक्रमण को प्रकोप मानकर समूह में पूजा करने निकल जा रही हैं महिलाएं
– दूसरों की कही सुनी बातों, भ्रांतियां और नकल की प्रवृत्ति से अंधविश्वास ले रहा जन्म
– परिवार के लोगों को भी आना होगा आगे, समझाएं यह महामारी है कोई प्रकोप नहीं
पूर्णियाँ, 12 अगस्त:
कोरोना का संक्रमण दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। शहर के साथ-साथ गांव और कस्बों तक इसका प्रभाव पहुंच चुका है। इसकी दवा अब तक नहीं है, हालांकि वैश्विक स्तर पर वैक्सीन को लेकर अनुसंधान लगातार जारी है। इधर, संक्रमण को लेकर तरह- तरह की भ्रांतियां और अंधविश्वास भी जन्म ले रहे हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों के लोगों में ज्यादा भ्रम की स्थिति है। संक्रमण की खबरों से परेशान कई गांवों में इसे प्रकोप तक माना जा रहा है। वहीं बहुत से जगहों पर महिलाएं कोविड-19 को ‘कोरोना माई’ की संज्ञा तक देकर पूजा-पाठ भी किया जा रहा है। पर वास्तविकता में महामारी के फैलने का सबसे बड़ा कारण जागरूकता का अभाव और नियमों की अनदेखी है। दूसरों की कही सुनी बातों और उसके अनुकरण से अंधविश्वास जन्म लेता है। इसलिए सतर्कता और सजह रहते हुए अपनी सुरक्षा स्वयं करना ज्यादा जरूरी है.
गांवों में संक्रमण को माना जा रहा प्रकोप :
जिले में संक्रमण से स्वयं और अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए कोरोना को माता की संज्ञा देकर पूजा की जा रही है। सोशल मीडिया पर इसे शेयर भी किया जा रहा है। इससे संबंधित कई तरह की अन्य अफवाहें और भ्रांतियां भी फैलाई जा रही हैं। लोग कोरोना संक्रमण को ईश्वरीय प्रकोप समझने की भूल कर रहे हैं। बहुत जगह कही सुनी बातों में आकर महिलाओं द्वारा बैंड बाजे के साथ कोरोना का पूजा भी किया जा रहा है। इस दौरान न तो उनके द्वारा शारीरिक दूरी का पालन की जा रही और न ही संक्रमण को लेकर सतर्कता बरती जा रही है।
समाज हो सकती है प्रभावित :
प्रशासन द्वारा लोगों से लगातार अपील की जा रही है कि बहुत आवश्यक हो तभी घरों से बाहर निकलें। लेकिन कई जगह आज भी इसकी अनदेखी की जा रही है। इधर, कोरोना संक्रमण को माता मानकर पूजा करने जा रहे लोग पूजा के दौरान न तो मास्क पहन रहे हैं और न ही शारीरिक दूरी (दो गज या छह फीट) का ख्याल रख रहे हैं। वो भी ऐसे समय में जब संक्रमण हमारे घरों की दहलीज तक पहुंच चुका है। ऐसे में अगर कोई लोग जो संक्रमित हैं या ऐसों के संपर्क में आए हैं और ऐसे लोग पूजा में भी शामिल होते हैं तो एक बड़ा वर्ग इसकी चपेट में आ सकता है।
संक्रमण का खतरा हर जगह है:
कोविड-19 एक ऐसा संक्रमण है जो आम और खास को नहीं देखता। इसकी चपेट में अति सतर्कता और जागरूकता बरतने वाले लोग तक आ चुके हैं। केंद्र के कई मंत्री, मुख्यमंत्री और हमेशा स्वच्छता और सुरक्षा वाले क्षेत्र में रहने वाले सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और उनका परिवार तक इसकी चपेट में आ सकता है तो आप और हम क्यों नहीं। संक्रमण रोकने के लिए ही सरकार द्वारा मंदिरों तक में प्रवेश पर रोक लगाई थी। संक्रमण का खतरा हर जगह है, इसलिए अपनी सावधानी हमें स्वयं रखनी चाहिए।
समाज के बुद्धिजीवी लोगों को आना होगा आगे :
लोगों को अंधविश्वास से बाहर निकलने के लिए समाज और घर-परिवार के लोगों को सबसे पहले पहल करनी होगी। बड़े-बुजुर्गों और बुद्धिजीवी लोगों की सभी बाते सुनते और मानते हैं, ऐसे में उनका समझाना सबसे बेहतर होगा। युवा भी इसमें अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। माताएं बच्चों की खुशियां चाहती हैं, वह अवश्य ही उनकी बातों को समझेंगी और मानेंगी। स्थानीय जनप्रतिनिधि, शिक्षक, वार्ड सदस्य एवं मुखिया आदि की भूमिका कोरोना के प्रति लोगों को जागरूक करने में महत्वपूर्ण हो सकती है।
पूर्णियां पूर्व प्रखंड के बीडीओ अजय कुमार ने बताया कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों के साथ ही पुलिस द्वारा भी लोगों को जागरूक करने को लेकर निर्देशित किया गया है। लोग अंधविश्वास में न आएं ,इसलिए पारिवारिक स्तर पर भी पहल की जानी चाहिए। इस वक्त सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना और मास्क का प्रयोग अपने साथ दूसरों की सुरक्षा के लिए बेहद जरूरी है। संक्रमण के प्रभाव में आने से बचने के लिए सभी की सतर्कता और जागरूकता बेहद जरूरी है। इसलिए सभी जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता व बुद्धिजीवी सदस्यों को अपने क्षेत्र में लोगों को कोरोना सम्बंधित जागरूकता के लिए आगे आना चाहिए और लोगों तक सही जानकारी पहुँचाने में प्रशासन और सरकार की मदद करनी चाहिए.