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बिहार जनसंख्या नीति संशोधन से परिवार नियोजन के बेहतर परिणाम की कोशिश

बैठक के माध्यम से जनसंख्या नीति संशोधन पर चर्चा

• जनसंख्या नीति संशोधन के लिए कोर एवं प्रारूप समिति का गठन
• वर्ष 2045 तक कुल प्रजनन दर 1.6 करने का लक्ष्य

पटना/ 3 दिसम्बर:

राज्य में परिवार नियोजन के बेहतर परिणाम हासिल करने एवं शिशु व प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर करने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में बिहार जनसंख्या नीति बनाई गयी. साथ ही इस नीति के तहत वर्ष 2015 तक बिहार के कुल प्रजनन दर को 2.1 एवं वर्ष 2045 तक 1.6 लाने का लक्ष्य भी रखा गया. इसको लेकर सरकार द्वारा कई स्तर पर प्रयास किए गए. इसमें परिवार नियोजन के कई सूचकांकों में सफलता भी मिली है. लेकिन अभी भी राज्य का कुल प्रजनन दर 3.2 ही है. इसे ध्यान में रखते हुए बिहार जनसंख्या नीति के संशोधन का फ़ैसला लिया गया है. इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार की अध्यक्षता में मंगलवार को सचिवालय सभागार में एक बैठक आयोजित की गई. बैठक के दौरान बिहार जनसँख्या नीति संशोधन पर विस्तार से चर्चा की गई एवं इसके लिए गठित समितियों (कोर एवं प्रारूप समिति) को दिशा-निर्देश दिया गया.
जनसंख्या नीति में संशोधन की जरूरत: इस दौरान प्रधान सचिव स्वास्थ्य विभाग संजय कुमार ने बताया विगत कुछ वर्षों में परिवार नियोजन परिणामों में सुधार देखने को मिले हैं. लेकिन अभी भी राज्य की कुल प्रजनन दर 3.2 है, जिसे 2.1 तक लाना है. इसके लिए बिहार के वर्तमान जनसंख्या नीति में संशोधन की जरुरत है. यद्यपि परिवार नियोजन के कुछ साधनों में काफ़ी सुधार भी देखने को मिले हैं. बिहार में तक़रीबन 4.24 लाख महिलाओं ने अंतरा इंजेक्शन लगवाया है, जो पूरे देश में सर्वाधिक है. वर्ष 2017-18 की तुलना में 2018-19 में परिवार नियोजन के कुछ सूचकाकों में बढ़ोतरी भी देखने को मिली है. जिसमें पुरुष नसबंदी, प्रसवोपरांत कॉपर टी इस्तेमाल एवं अंतरा इंजेक्शन शामिल है. लेकिन बिहार में लगभग 16.2 की उम्र में शादी, 19.2 कि उम्र में माँ बनना एवं 5.5 वर्ष के अन्तराल में 3 बच्चों को जन्म देना जैसे कारण परिवार नियोजन के लक्ष्य हासिल करने एवं कुल प्रजनन दर में कमी लाने में अवरोधक हैं. इस लिहाज से भी बिहार के वर्त्तमान जनसंख्या नीति में संशोधन कि जरूरत है.
तीन स्तर पर लक्ष्य की जरूरत: भारत सरकार के सेवानिवृत स्वास्थ्य सचिव केशव देश राजू ने बताया बिहार जनसंख्या नीति में संशोधन के वक्त तीन स्तर के लक्ष्य निर्धारित करने की जरूरत है. जिसमें अल्पकालीन, मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन लक्ष्यों को ध्यान में रखना होगा. इसके लिए जिलावार रणनीति बनाने की भी जरूरत होगी. इसमें खाली पदों को भरने के साथ बालिकाओं के लिए बेहतर शिक्षा व्यवस्था बहाल करने के लक्ष्य निर्धारित करने होंगे.
इसलिए जनसंख्या नीति में संशोधन है जरुरी: पापुलेशन फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया की कार्यपालक निदेशक पूनम मुतरेजा ने बताया बिहार में 10 से 24 साल की लगभग 30 प्रतिशत यानि 3.14 करोड़ आबादी है. जिसमें 88.7 प्रतिशत लोग गांवों में निवास करते हैं. साथ ही मिशन परिवार विकास के तहत देश में चयनित उच्च प्रजनन दर वाले 146 जिलों में बिहार के 37 जिले शामिल है. साथ ही विगत कुछ सालों में परिवार नियोजन सूचकाकों में आंशिक सुधार दर्ज हुई है. इन सभी को ध्यान में रखते हुए ही वर्तमान बिहार जनसँख्या नीति में संशोधन की जरूरत है.
संशोधन के लिए दो समितियां गठित:
बिहार जनसँख्या नीति के संशोधन हेतु दो समितियां गठित की गई हैं, जिसमे प्रधान सचिव स्वास्थ्य विभाग संजय कुमार की अध्यक्षता में “कोर समिति” एवं भारत सरकार के सेवानिवृत स्वास्थ्य सचिव केशव देश राजू की अध्यक्षता में “प्रारूप समिति” का गठन किया गया है. कोर समिति महीने में एक बार बैठक करेगी. बैठक के जरिये वर्तमान जनसँख्या नीति में तय किये गए लक्ष्य के सापेक्ष हुए विकास की समीक्षा, वर्तमान रणनीति की समीक्षा करते हुए प्रारूप समिति को सुझाव देगी. साथ ही विभिन्न साझेदारों के सुझावों हेतु विमर्श भी करेगी. यह प्रारूप समिति द्वारा बनाये गए जनसँख्या नीति के अंतिम प्रारूप की समीक्षा भी करेगी.
वहीँ प्रारूप समिति राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर के वर्तमान नीतियों एवं कार्यक्रमों की समीक्षा एवं विश्लेषण करेगी तथा आंकड़े एवं साक्ष्य का अध्ययन कर वर्तमान स्थिति पर सुझाव देगी.
इस दौरान कार्यपालक निदेशक स्वास्थ्य समिति मनोज कुमार, परिवार नियोजन के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. सज्जाद अहमद, पीएफआई के सोना शर्मा के साथ जीविका, पंचायती राज एवं शिक्षा विभाग के राज्य स्तरीय पदाधिकारी उपस्थित थे.

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